छत्तीसगढ़ की ऐसा गाँव यहाँ मनाई जाती हैं अनोखी होली, होलिका दहन के बाद अंगारों पर चलने की है परंपरा – जाने पूरी जानकारी

बस्तर: छत्तीसगढ़ दुनिया भर में अनेकों परंपराओं को समेटे हुए हैं यहाँ तीज त्याहारों में भी कुछ अनोखी रीतिरिवाज देखी जा सकती हैं इन्ही परंपराओं में अबूझमाड़ के पास एक ऐसा गांव है जो अबूझमाड़ का प्रवेश द्वार कहा जाता है. इस गांव का नाम एरपुंड है. यहां होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया गया. होलिका दहन के दौरान एक विशेष परंपरा का निर्वहन किया गया. लोगों ने होलिका दहन के बाद नंगे पैर अंगारों पर चलकर कई वर्षों की परंपरा को निभाया. इसके बाद अबूझमाड़ में होली उत्सव की शुरुआत हो गई.
अबूझमाड़ में होली की अनोखी परंपरा: गांव के ग्रामीणों ने बताया कि अबूझमाड़ में होलिका दहन की अनोखी और अटूट परंपरा आज भी अनवरत चली आ रही है. यहां के ग्रामीण होलिका दहन करने के बाद आग के अंगारों पर नंगे पांव चलते हैं. इस गांव की आबादी लगभग 500 से 600 है. इस गांव में हल्बा आदिवासी , गोंड आदिवासी सहित अन्य जनजातियों के लोग निवास करते है. गुरुवार को गांव में होली जलाई गई और उसके बाद अंगारों पर लोग दौड़ते नजर आए.
अबूझमाड़ में यह वर्षों पुरानी परंपरा है. जब से यह गांव बसा है. उस समय से होलिका दहन के दौरान आग के अंगारों पर इनके पूर्वज चलते हैं. गांव की सुख, समृद्धि और खुशहाली के लिए इनके पूर्वज फाल्गुन मास में होलिका दहन के बाद आग के अंगारों में चलते थे. इसलिए पूर्वजों की इस परम्परा को यहां के निवासी आज भी निभाते हैं. अंगारे पर चलने के बाद भी ग्रामीणों को कोई नुकसान नहीं होता है. ना ही उनके पैर जलते हैं- केदार नाथ राणा, पुजारी एरपुण्ड
एरपुंड गांव की परंपरा पर क्या कहते हैं ग्रामीण?: ईटीवी भारत की टीम को ग्रामीणों ने बताया कि पिछले कई वर्षों से इस परंपरा को निभाया जा रहा है. होलिका दहन के बाद सबसे पहले ग्राम देवी के छत्र को पकड़कर गांव के माटी पुजारी और ग्राम पटेल अपने दल की अगुवाई करते हैं. वह सबसे पहले अंगारों पर चलते हैं. उसके बाद उनके पीछे पीछे ग्रामीण अंगारों पर चलते हैं. गांव के पुजारी केदार नाथ राणा ने बताया कि ग्राम की देवी मोकाबूंदीन और मावली देवी में बहुत शक्ति है. जिसके बदौलत गांव के ग्रामीण होलिका दहन के बाद अंगारों पर चलने की परंपरा को निर्भीक रूप से निभाते हैं. उन्हें किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुँचता है ।
