तहसीलदार के आईडी और सील साइन से बना EWS का मामला ठंडे बस्ते में …संलिप्तो को क्या दे दिया गया अभयदान?

बिलासपुर / संपन्न परिवार और दलालो समेत मामले में संलिप्त अधिकारियों /कर्मचारियों को क्या EWS मामले से अभयदान दे दिया गया है ,या केवल जाँच जांच के खेल करके मामले को किया जा रहा दबाने का प्रयास ,फिलहाल पूरा मामला लोगों के लिये उत्सुकता का विषय बना हुआ है कि अभी इस मामले में क्या अपडेट हुआ है या फिर ये मामला भी तहसील कार्यालय के किसी कोने में बस्ते में बंद कर दिया जायेगा ,बताते चलें कि फर्जी सर्टिफिकेट से MBBS में दाखिला लेने श्रेयांशी गुप्ता (सरकंडा),सुहानी सिंह (लिंगियाडीह, सीपत रोड),भाव्या मिश्रा (सरकंडा) के द्वारा सर्टिफिकेट बनवाया गया था इसका खुलासा तब हुआ जब संबंधित संस्था ने वेरिफिकेशन के लिए बिलासपुर तहसील कार्यालय में प्रमाणपत्र भेजा ,इसमें
बिलासपुर के तीन छात्राओं ने ईडब्ल्यूएस (इकोनॉमिकली वीकर सेक्शन) सर्टिफिकेट बनवाकर नीट परीक्षा में चयन प्राप्त किया और सरकारी मेडिकल कॉलेजों में सीट अलॉट करवा ली। आयुक्त चिकित्सा शिक्षा द्वारा दस्तावेज वेरिफिकेशन के दौरान यह फर्जीवाड़ा सामने आया। ये सभी बिलासपुर तहसील की निवासी हैं। फर्जी ईडब्ल्यूएस सर्टिफिकेट का सहारा लेकर इन छात्राओं ने नीट UG में चयन सुनिश्चित किया। इस कोटे के तहत सवर्ण वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर अभ्यर्थियों को सरकारी कॉलेजों और नौकरियों में 10% आरक्षण मिलता है।
मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस कोर्स में प्रवेश के लिए राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) का परिणाम और रैंक अहम होता है। इन छात्राओं ने ईडब्ल्यूएस सर्टिफिकेट का उपयोग करके अपनी रैंक के आधार पर सीट अलॉट करवा ली।
हालांकि, दस्तावेज सत्यापन के दौरान आयुक्त चिकित्सा शिक्षा ने जब बिलासपुर तहसील से सर्टिफिकेट की जांच करवाई तो पता चला कि इस नाम पर कोई आवेदन या प्रकरण तहसील में नहीं हुआ था। बिलासपुर तहसीलदार गरिमा सिंह और एसडीएम मनीष साहू ने पुष्टि की कि तीनों छात्राओं को कोई भी प्रमाणपत्र जारी नहीं किया गया।नियम के अनुसार ईडब्ल्यूएस सर्टिफिकेट केवल आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लिए जारी किया जाता है। इसके लिए सालाना आय आठ लाख रुपए से कम होनी चाहिए, कृषि भूमि पांच एकड़ से कम और मकान निगम सीमा में एक हजार वर्ग फुट से कम होना चाहिए। आवेदन पर पटवारी प्रतिवेदन बनाकर तहसीलदार को प्रस्तुत करता है और सर्टिफिकेट केवल एक वर्ष के लिए वैध होता है।वही इस मामले का खुलासा होने के बाद अब प्रशासन ने जांच करने की दुहाई दे दिया है । देखा जाये तो इस पूरे मामले में तहसील कार्यालय की कार्यप्रणाली और रिकॉर्ड गायब होने पर प्रशासनिक लापरवाही पर भी सवाल उठे हैं हालांकि इस मामले में परिजनों का आरोप है कि सर्टिफिकेट नियम के तहत ऑनलाइन आवेदन करके बनवाया गया था , गड़बड़ी तहसील के भीतर हुई होगी।” इतने बड़े मामले में केवल एक क्लर्क प्रहलाद सिंह नेताम को नोटिस जारी कर प्रभार से हटाया गया। जबकि सम्बंधित सर्टिफिकेट,सील साइन सभी तहसील दार के आई डी  से बना है इस मामले में वह भी बड़ा दोषी है जिन्होंने  ईडब्ल्यूएस सर्टिफिकेट बनवाने झुठी शपथपत्र दिये।वही इस सर्टिफिकेट को उपयोग करने वाले मेडिकल स्टूडेंट्स क्या वास्तव मे दोषी है , फिलहाल इस संदर्भ में संबंधित तहसीलदार से संपर्क नहीं होने से आगे का अपडेट नही मिल सका है ,अब देखना है कि इस बड़े मामले में कब तक,किन किन पर कार्यवाही किया जाता हैं ।