“गुन के ग्राहक सहस नर बिनगुन लहे न कोय”
छत्तीसगढ़/अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त वैद्य निर्मल अवस्थी ने छत्तीसगढ़
के पारंपरिक वैद्यों के ज्ञान आधारित चिकित्सा पद्धति का गहन अध्ययन किया और दस्तावेजीकरण भारत की विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं अनुसंधान संस्थान के सम्पर्क में पारंपरिक ज्ञान आधारित वनस्पतियों की पहचान की है। वैद्य अवस्थी को भारत सरकार के सहयोग से भारत के प्रथम स्वदेशी ज्ञान अध्ययन केंद्र की स्थापना डा हरी सिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय सागर में हुई है उस केन्द्र का सलाहकार सदस्य मनोनीत किया गया है। ज्ञात हो भारत के प्रधानमंत्री 19 अप्रैल 2022 को जामनगर गुजरात में भारतीय पारंपरिक ज्ञान अनुसंधान केन्द्र का उद्घाटन किया था। स्वदेशी ज्ञान अध्ययन केंद्र जामनगर गुजरात में स्थापित केन्द्र से संबद्धता रख कर पारंपरिक ज्ञान आधारित अनुसंधान को गति मिल सकेगी। वैद्य अवस्थी को भारत के सभी विषय विशेषज्ञों ने बधाई दी और कहा कि अवस्थी ने 32 वर्षों में जो पारंपरिक वैद्यों के ज्ञान का दस्तावेजीकरण किया है सच में यह अनुसंधान के लिए उपयोगी सिद्ध होगा। वैद्य अवस्थी सन 2014 में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में भी सम्मानित किए गए थे उन्होंने ने साऊथ अफ्रीका, थाइलैंड, भूटान, नेपाल इण्डोनेशिया आदि देशों के सेमिनार में सहभागिता दी है साथ ही भारत की विभिन्न विश्वविद्यालयों में आयोजित राष्ट्रीय व अतंरराष्ट्रीय सेमीनार के माध्यम से इस विषय पर मांग करते रहे हैं कि भारतीय पारंपरिक ज्ञान आधारित चिकित्सा का वैज्ञानिक प्रमाणीकरण और अनुसंधान ही मानव सभ्यता के विकास व संरक्षण संवर्धन में अपनी अहम भूमिका अदा कर सकता है क्योंकि प्राकृतिक संसाधन एवं मानव एक दूसरे के पूरक हैं । प्रकृति का अनुपम उपहार स्वरूप दुर्लभ वनस्पतियां जिनमें आरोग्य जीवन का रहस्य समाहित है वह विलुप्तता
की कगार पर है।

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